तिलस्मी किले का रहस्य भाग_ 11




कहानी _** *तिलस्मी किले का रहस्य**
भाग _ 11
लेखक_ श्याम कुंवर भारती

दोनो थक कर पुनः सस्त्रगार के बाहर आकर बैठ गए ।सुरभी ने कहा _ मुझे जोरो की भूख लग रही है और थकावट भी हो रही है।ऊपर से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नही आ रहा है।कुछ करो तुम प्रताप।

कर ही तो रहा हूं कोई रास्ता नही मिल रहा है तो मैं क्या करूं ।थोड़ा हिम्मत रखो और उठो चलो यहां से और कोशिश करते हैं शायद कही कोई रास्ता मिल जाए।
सुरभी उठना नही चाह रही थी लेकिन प्रताप ने उसका हाथ पकड़कर ऊपर खींच कर खड़ा कर दिया और उसे खिंचता हुआ आगे बढ़ गया।
सुरभी बेमन से उसके पीछे पीछे चलने लगी ।
अब वे दोनो एक सुरंग में आ गए थे।सुरंग में अंधेरा होने लगा था।हालांकि सुरंग में रोशनी हेतु जगह _ जगह मसाले लगी हुई थी मगर अभी बुझी हुई थी ।
प्रताप ने कहा _ राजा महाराजा और उनके आदमी जब इस सुरंग से आते जाते होंगे तब ये मसाले जलती रही होंगी।
हां शायद तुम ठीक कह रहे हो ।सुरभी ने कहा ।प्रताप ने कहा तुम्हारा मोबाइल
 तो हैं न।मेरे मोबाइल की बैटरी डाउन हो रही है।नेवर्क भी काम नही कर रहा है।एल
मेरे मोबाइल का भी वही हाल है ।सुरभी ने कहा ।
तुम अपना मोबाइल ऑफ कर दो ताकि बैटरी कुछ बची रहे । जरूरत पर काम आयेगी ।मैं अपने मोबाइल की टार्च ऑन करता हूं और इसकी रोशनी में आगे बढ़ते हैं ।
आगे जाने पर सुरंग में दो रास्ते नजर आए ।एक थोड़ी साफ सुथरी थी लेकिन दूसरी काफी गंदी सुरंग थी । लगता है इस सुरंग का उपयोग कम होता रहा होगा लेकिन दूसरी वाली का उपयोग ज्यादा होता रहा होगा ।चलो इसी सुरंग से चलते हैं।देखते है कहा तक जाती है।
दोनो काफी देर तक सुरंग में चलते रहे मगर सुरंग खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी।तभी हल्की रोशनी आने लगी ।प्रताप ने कहा लगता है यह सुरंग का मुहाना है चलो जल्दी ताकि रात होने से पहले हम लोग बाहर निकल जाए।लेकिन सुरभी से जल्दी जल्दी चला नही जा रहा था।प्रताप ने उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए चलने लगा।उन दोनो को देखकर बड़ी खुशी हुई की सुरंग का मुहाना सामने था।मुहाने पर बड़ी बड़ी झाड़ियां उग आई थी ।जिनसे छनकर डूबते सूरज की हल्की रोशनी और हवा आ रही थी।
प्रताप ने सुरभी के हाथ से तलवार लेकर झाड़ियों को काटना शुरू किया।थोड़ी ही देर में उसने जाने लायक रास्ता बना दिया।
दोनो झाड़ियों से बचते रहे बाहर निकल गए।
सुरभी खुशी से उछलने लगी अरे देखो हमलोग सुरंग से बाहर आ गए ।
प्रताप भी काफी खुश हुआ ।
हां हमलोग बाहर तो निकल गए लेकिन पहले यह तो देखो हमलोग अभी कहा आ गए हैं।
शायद यह कोई जंगल मालूम पड़ रहा है।सुरभी ने कहा
मुझे भी लग रहा है।प्रताप ने जवाब दिया।  
पहले चलो देखो कही कुछ फल फूल मिल जाए और पानी मिल जाए तो जान में जान आए ।फिर वापस किला में जाने का रास्ता खोजते है।
सुरभी ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा ।ठीक है आओ चलते है ।दोनो जंगल में इधर उधर घुमने लगे।सावधानी से चलना पता नही जंगल में खतरनाक जानवर भी हो सकते है ।प्रताप ने कहा।दोनो अभी कुछ ही दूर गए होंगे जंगली सूअर उनकी तरफ बड़ी तेजी से आता दिखा ।अपनी तलवार कसके पकड़ के रखना और जैसे ही सूअर पास आए एक तरफ हट जाना है।सूअर सीधा हमला करता है।सुरभी घबड़ा गई।प्रताप ने तुरंत सुरभी को लेकर एक तरफ छलांग लगा दिया ।सूअर सीधा भागता चला गया।उसके नथुने से दो लबे दांत बहुत नुकीले और खतरनाक लग रहे थे।अगर दोनो रास्ता से नही हटते तो वो उनके पेट को फाड़ देता।
वो लौट कर फिर वापस तेजी से आने लगा ।प्रताप ने सुरभी को अपने पीछे कर लिया और अपना भाला तानकर खड़ा हो गया ।जैसे ही सूअर उसके करीब आया उसने भाला इसके छाती में घुसा दिया ।वो जोर जोर से चिघाड़ने लगा।
मगर वो इतनी जोर से उछला की भाला उसकी छाती से निकल आया और उसकी छाती से खून बहने लगा।मगर वो रुका नही चिघाड़ते हुए वहा से भाग खड़ा हुआ।
प्रताप ने राहत की सांस लिया।
सुरभी काफी डरी हुई थी ।प्रताप ने उसे हिम्मत बढ़ाया और उसे लेकर आगे बढ़ गया।
तभी सुरभी जोर से चीख पड़ी ।प्रताप चौंक गया।क्या हुआ क्यों चीख रही हो ।
सुरभी ने डरते हुए अंगुली से दिखाया।सामने एक पेड़ पर एक विशाल अजगर सांप सरक कर ऊपर चढ़ रहा था।
प्रताप ने कहा डरो मत ।चलो दूसरे रास्ते से ।अजगर डंसता नही निगलता है।दोनो ने रास्ता बदल लिया ।अचानक सुरभी खुशी से चहकने लगी ।सामने एक सुंदर सा झरना था जिसमे बड़े सुंदर सुंदर फूल खिले हुए थे।काफी छोटी बड़ी मछलियां थी जिन्हें खाने के लिए पक्षी चारो तरफ मंडरा रहे थे।पक्षियों की चहचहाट बहुत सुंदर लग रही थी ।पानी ऊपर से नीचे गिर रहा था।
प्रताप ने देखा झरना के आसपास काफी बड़े बड़े पेड़ थे।जिनपर काफी फल लगे हुए थे।।देखो सुरभी तुम्हारे खाने पीने का इंतजाम हो गया उसने सुरभी को पेड़ो को दिखाते हुए कहा।
तो देख क्या रहे हो जल्दी चढो पेड़ पर और ढेर सारे फल तोड़ के ले आओ।
ठीक है ठीक है ज्यादा बेसब्र मत हो मैं जाता हूं।
प्रताप ने अपना भाला सुरभी को दिया और पेड़ो की ओर बढ़ गया।
सुरभी झरने में तैरती उतराती मछलियों को देखकर बड़ी खुश हो रही थी ।

शेष अगले भाग _12 में 

लेखक _ श्याम कुंवर भारती
बोकारो, झारखंड
मोब.९९५५५०९२८६






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4 Comments

Madhumita

23-Jan-2024 07:19 PM

Nice one

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Varsha_Upadhyay

23-Jan-2024 05:29 PM

बहुत खूब

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Gunjan Kamal

23-Jan-2024 03:58 PM

👏👌

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